Happiness, सुख, ख़ुशी, प्रसन्नता

ख़ुशी, प्रसन्नता, सुख या आनंद। नाम जो चाहे ले लो आप लेकिन ये चाहिए तो सबको। आपको भी। आप अभी जो कर रहे हैं, वो क्यों कर रहे है? अगर आप आराम कर रहे हैं तो क्यों कर रहे है? कुछ काम कर रहे हैं तो क्यों कर रहे है? सबका अंतिम उद्देश्य सुख पाना ही है, चाहे वो क्षण मात्र लिए ही क्यों ना हो।
क्या आप खुश हैं?
क्या आप अभी खुश है? अगर आप अभी खुश है तो फिर वो क्यों कर रहें हैं जो अभी कर रहे हैं? खुशियाँ पाने के लिए? लेकिन आप तो पहले ही खुश हैं और जो चीज आपके पास पहले ही है उसे पाने के लिए कुछ करने की फिर कहाँ जरूरत रह जाती है? इसका मतलब ये है की आप खुश नहीं हैं और अभी भी सुख की तलाश में हैं?
सुख मिलने का एकमात्र स्थान:
खुशियाँ कहाँ मिलती हैं? कैसे मिलती हैं? लोग सोचते हैं की मैं ये काम कर रहा हूँ उसमें सफल हो जाऊंगा तो सुख मिलेगा। मुझे मेरी पसंद की वो चीज मिल जाएगी तो मैं खुश हो जाऊंगा। मेरी ज़िंदगी में वो आ जाएगी या आ जायेगा फिर ज़िंदगी में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी। मेरा ये सपना पूरा हो जायेगा तो आनंद मिलेगा।
लोग अपनी खुशियों को बाहरी चीजों से बाँध के रखते है। लेकिन जब वो चीज मिल जाती हैं तो क्या आपके ज़िंदगी में हमेशा के लिए खुशियाँ आ जाती है? बिलकुल नहीं। कुछ समय के लिए आप ख़ुशी और संतुष्टि महसूस करते है लेकिन उसके बाद वो ख़ुशी फीकी पड़ जाती है और आप फिर से किसी नए चीज के पीछे भागने लगते है जिससे खुशियाँ मिल जाये।
सच तो ये हैं की खुशियाँ बाहर से कभी नहीं मिलतीं ये तो हमारे अन्दर से आती है। हर जीव का स्वभाव है खुश रहना। हमारी आत्मा की सहज प्रवृत्ति ही आनंद है। खुशियाँ मिलने का एक मात्र स्थान है हमारी आत्मा।
हम खुश क्यों नहीं हैं?

यहाँ पर अब कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं। लेकिन मेरा फला सपना पूरा हुआ था तब मैं खुश हुआ था ना। वो मेरी ज़िंदगी में आई या आया तब खुशियाँ मिली थी। इसका मतलब तो यहीं हुआ ना कि बाहर की चीजों से भी खुशियाँ मिलती है?
आपको जरूर खुशियाँ मिली थीं उस समय लेकिन वो बाहर से नहीं आपके अन्दर से ही आई थी। दरअसल आनंद तो निरंतर हमारे अन्दर से बाहर फैलता रहता है। जैसे सुगंध हमेशा फूलों से निकल के बाहर वातावरण में फैलती रहती है। वैसे ही खुशियाँ हमारे अन्दर से आती रहती हैं।
समस्या यहाँ पर ये है की हमने इस स्रोत को बहुत सारे बोझ से ढक दिया है। भय, चिंता, अशांति, संदेह, उदासी, कड़वाहट, असंतोष, निराशा वाद आदि सारे भावनाएं वो बोझ हैं जो हमारी खुशियों के स्रोत को ढंक के रखती हैं और हमें खुशियाँ महसूस नहीं होतीं।
जब हमारा कोई सपना पूरा हो जाता है, कोई सफलता मिल जाती है तब हम इन बोझ को कुछ समय के लिए भूल जाते है। उस सफलता से जो भावनाएं उत्पन्न होती है वो इतनी शक्तिशाली होती है की इन बोझ को कुछ समय के लिए हटा देती है और तब हम खुशियाँ महसूस करते है। आनंदित होते है। प्रसन्न होते है। लेकिन जल्दी ही समय के साथ फिर से जैसे का तैसे हो जाता है।
खुशियों को रोकने वाले कहाँ से आते हैं?

जैसा की हम सब जानते है इन्सान एक सामाजिक प्राणी है। ये हमेशा से ही बाहरी चीजों से जुड़ा रहता है। हर दिन हर समय ये किसी न किसी चीज के प्रभाव में ही रहता है। अलग-अलग जानकारियाँ, विचार, बातें और भावनाएं हमारे मस्तिष्क या मन में लगातार आती रहती है। और इनमें से अधिकतर चीजें नकारात्मक, निराशा वादी या फिर चिंतित करने वाली ही होती है।
आप अख़बार खोलते है तो उनमें कैसी खबरें ज्यादा होती हैं? टीवी में आपको कौन सी जानकारियाँ ज्यादा दिया जाता हैं? सोशल मीडिया से कैसी भावनाएं आपको मिलती हैं? अधिकतर जगहों पे ऐसी ही चीजे लोगों को परोसी जाती हैं जिससे वो नकारात्मक, और हीन महसूस करते हैं।
ऐसी ही विचार मन में लगातार उत्पन्न होते रहते हैं। और हमारे मन की खास बात ये है कि इसमें जो चीज जितना भरेंगे वो उसी तरह की चीजों को और ज्यादा मांगती है। इस तरीके से दुःख पैदा होता है और हम खुशियों को रोकने वाले इस बोझ के नीचे दब जाते हैं।
अन्दर से आती ख़ुशी का अहसास कैसे करें
अगर आप रोजमर्रा की भागती दुनिया से तनाव में आ गये हैं, चिंता दुःख उदासी निराशा और अशांति जैसी किन्हीं भी दूसरी दुर्भावनाओं से पीड़ित है और खुशियों की तलाश कर रहे हैं। फिर भी आपको ख़ुशी नहीं मिल रही तो चिंता मत करिए। समय आ गया है खुश होने का और खुश होने का राज हम लाये हैं अपने इस प्रोग्राम में। यह 72 घंटो का प्रोग्राम आपकी जीवन शैली बदल सकता है। हफ़्तों और महीनों तक ट्रेनिंग करने का कोई झंझट ही नहीं। ना ही 21 दिन में कोई नई आदत डालनी है। आपको देने हैं बस 72 घंटे। और इन 72 घंटों को नाम देना है हैप्पीनेस चैलेंज का।
इन 72 घंटों में आप इन बोझ को हटा के अन्दर से आती हुई ख़ुशी महसूस कर पायेंगे। अगर आप ये चैलेंज लेने के लिए तैयार है तो आगे बढ़ें।